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Dilip Kumar’s iconic dialogues on his 2nd death anniversary

Dilip Kumar's iconic dialogues

Dilip Kumar's iconic dialogues

On July 7, 2021, legendary actor Dilip Kumar left for his heavenly ride. However, his memories are still alive in our hearts. Courtesy, his remarkable contribution to Indian cinema.

On his 2nd death anniversary, let’s pay tribute to him by remembering his iconic dialogues that forever echo in our minds.

1.Kaun kambakht hai jo bardaasht karne ke liye peeta hai, main toh peeta hoon ki bas saans le sakun

2. Ek kranti marega… toh hazaar kranti paida honge

3. Mera dil bhi aapka koi Hindustan nahi, jispar aap hukumat karein

4 Haq hamesha sar jhukake nahin… sar uthake maanga jaata hai

5. Joh log sachai ki tarafdari ki kasam khate hain…zindagi unke bade kathin imtihaan leti hai

दिलीप कुमार के आइकॉनिक डायलॉग्स

  1. कौन कम्बख्त है जो बर्दाश्त करने को पीता है..मैं तो पीता हूं कि सांस ले सकूं,
  2. हक हमेशा सर झुकाकर नहीं… सर उठाकर मांगा जाता है।”
  3. शेर को अपने बच्चों की हिफाजत के लिए शिकारी कुत्तों की जरूरत नहीं है।
  4. तकदीरें बदल जाती हैं, जमाना बदल जाता है, मुल्कों की तारीख बदल जाती है, शहंशाह बदल जाते हैं, मगर इस बदलती हुई दुनिया में मोहब्बत जिस इंसान का दामन थाम लेती है वो इंसान नहीं बदलता।
  5. जब पेट की रोटी और जेब का पैसा छिन जाता है ना, तो कोई समझ वमझ नहीं रह जाती आदमी के पास।
  6. कौन कम्बख्त है जो बर्दाश्त करने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूं कि बस सांस ले सकूं।
  7. मैं किसी से नहीं डरता, मैं जिंदगी से नहीं डरता, मौत से नहीं डरता, अंधेरों से नहीं डरता, डरता हूं तो सिर्फ खूबसूरती से।
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