Religion

Krishna Janmashtami 2024: अगर आप आज कृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हैं, तो जान लें पूजा के कुछ खास नियम

Krishna Janmashtami 2024 जन्माष्टमी का त्योहार 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। भक्त पूरे साल जन्माष्टमी त्योहार का इंतजार करते हैं।

देशभर में 18एवं 19अगस्त दोनों दिन कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस बीच कुछ लोग गुरुवार तो कुछ शुक्रवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस साल अष्टमी तिथि 18अगस्त व उदया तिथि और अष्टमी का आठवां पहर 19अगस्त को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कृष्ण जी का जन्म मध्यरात्रि को हुआ था। वहीं अगर आप 18अगस्त को जन्माष्टमी मना रहे हैं तो जान लें ये जरूरी बातें-

श्रीकृष्ण पूजन का शुभ मुहूर्त-

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अष्टमी तिथि कब से कब तक-
अष्टमी तिथि आरम्भ: 26 अगस्त, 2024, प्रातः 03:39 बजे लग जाएगी
अष्टमी तिथि समाप्त: 27 अगस्त, 2024, प्रातः 02:19 बजे होगी

कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा का शुभ समय 
निशिता पूजा (रात के समय) का समय: 27 अगस्त को रात 12:01 मिनट से 12:45 मिनट तक
आप इस दौरान 45 मिनट के शुभ मुहूर्त में कान्हा जी की आराधना कर सकते हैं और उनका जन्मोत्सव मना सकते हैं।
पारण का समय : 27 अगस्त को रात 12: 45 मिनट पर रहेगा

रोहिणी नक्षत्र कब होगा शुरू
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। ऐसे में 26 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत शाम 3 बजकर 54 मिनट से होगी और समापन 27 अगस्त को शाम 3 बजकर 39 मिनट पर होगा।

पूजा विधि 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रती को भगवान के आगे संकल्प लेना चाहिए कि व्रतकर्ता श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए, समस्त रोग-शोक निवारण के लिए, संतान आदि कोई भी कामना, जो शेष हो, उसकी पूर्ति के लिए विधि-विधान से व्रत का पालन करेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर मनोकामना पूर्ति एवं स्वास्थ्य सुख के लिए संकल्प लेकर व्रत धारण करना लाभदायक माना गया है। संध्या के समय अपनी-अपनी परंपरा अनुसार भगवान के लिए झूला बनाकर बालकृष्ण को उसमें झुलाया जाता है। आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी और उसमें मिले सूखे मेवे, पंचामृत का भोग लगाकर उनका प्रसाद भक्तों में बांटा जाता है। पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान एवं पंचामृत का पान करने से प्रमुख पांच ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर द्वारा निर्मित पंचामृत पूजन के पश्चात अमृततुल्य हो जाता है, जिसके सेवन से शरीर के अंदर मौजूद हानिकारक विषाणुओं का नाश होता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। अष्टमी की अर्द्धरात्रि में पंचामृत द्वारा भगवान का स्नान, लौकिक एवं पारलौकिक प्रभावों में वृद्धि करता है। रात्रि 12 बजे, खीरे में भगवान का जन्म कराकर जन्मोत्सव मनाना चाहिए। जहां तक संभव हो, संयम और नियमपूर्वक ही व्रत करना चाहिए। जन्माष्टमी को व्रत धारण कर गोदान करने से करोड़ों एकादशियों के व्रत के समान पुण्य प्राप्त होता है।

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