मौनी अमावस्या का महत्व (Mauni Amavasya Ka Mahatva)

मौनी अमावस्या का महत्व (Mauni Amavasya Ka Mahatva)

 

हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। माघ महिने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन मौन व्रत किया जाता है। मुनि शब्द से ही मौनी शब्द की उत्पत्ति हूई है। इसलिए इस व्रत में मौन धारण करके पुण्य फलों की प्राप्ति की जाती है। इस व्रत में गंगा स्नान करके मौन व्रत से विशेष फलों का प्राप्ति होती है। यदि इस दिन कोई व्यक्ति पवित्र नदी या गंगा नदी में स्नान न कर सके तो वह घर पर ही प्रात: काल उठकर मौन रहकर नित्य कर्मो से निवृत होकर स्नान करने वाले जल में ही थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।

इसके बाद अपनी यथा शक्ति के अनुसार पूजा और जप करें। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देवता को जल अवश्य अर्पित करें और गायत्री मंत्र का जाप करें। इससे आपको गौ दान का फल प्राप्त होगा। मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए।मौनी अमावस्या के बाद तिल, तिल के लड्डू , तिल का तेल, आंवला,स्वर्ण और गौ दान का विशेष महत्व होता है। इसलिए इस मौनी अमावस्या को अधिक महत्व दिया जाता है।

मौनी अमावस्या पूजा विधि (Mauni Amavasya Puja Vidhi)

  1. मौनी अमावस्या के दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और जहां पर गंगा नदी का संगम होता है। वहां पर स्नान करें।
  2. यदि ऐसा संभव ने हो सके तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें।
  3. नहाने के बाद मौन रहकर ही भगवान विष्णु की पूजा करें।
  4. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापति करें और भगवान विष्णु का पीले चंदन का तिलक करें।
  5. इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूलों की माला पहनाएं।
  6. तिलक के बाद एक हल्दी की माला लेकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
  7. इसके बाद भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाएं।
  8. इसके बाद भगवान विष्णु की धूप दीप से आरती उतारें और पूरे दिन मौन रहें।
  9. पूजा के बाद किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं और उन्हें दान में वस्त्र और अन्न अवश्य दें
  10. इसके बाद गाय को भी भोजन अवश्य कराएं और उनका आर्शीवाद लें।

मौनी अमावस्या पर स्नान का महत्व (Mauni Amavasya Snan Importance)

मौनी अमावस्या पर स्नान करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। यदि इस दिन जो व्यक्ति मौन रहकर गंगा नदी में स्नान करते हैं तो आपके सभी पाप धूल जाते हैं और मरने के उपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देव को भी जल अवश्य अर्पित करना चाहिए और गायत्री मंत्र का जाप करते हुए अपने पितरों को याद करना चाहिए। ऐसा करने से आपको पितरों को आर्शीवाद भी प्राप्त होगा। इतना ही नहीं ऐसा करने से आपको गौ दान का फल भी प्राप्त होगा।

मौनी अमावस्या पर पितृ तर्पण का महत्व (Mauni Amavasya Pitru Tarpan Impotance)

मौनी अमावस्या पर पितृ तर्पण को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन गंगा नदी के में स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं जिन लोगों की मृत्यु अकास्मिक होती है। उनका तर्पण करने से भी उन्हें शांति मिलती है। इसके साथ ही इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन पितरों का तर्पण अवश्य करें।

मौनी अमावस्या की कथा (Mauni Amavasya Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार देवस्वामी नाम का ब्राह्मण काँचीपुर नगरी में अपनी पत्नी और सात पुत्रों के साथ रहा करता था। उसने अपने सभी पुत्रों का विवाह कर दिया था। उस ब्राह्मण की एक पुत्री भी थी। जिसके लिए लह सुयोग्य वर तलाश कर रहा था।इसके लिए उसने उसकी जन्मपत्री एक ब्राह्मण को दिखाई। कुंडली देखने के बाद देवस्वामी ने बताया कि उसकी पुत्री में दोष है। जिसकी वजह से उसकी पुत्री विवाह के बाद विधवा हो जाएगी। इसके बाद देवस्वामी ने इसका उपाय पूछा तो पंडित ने बताया कि सिंहलद्वीप पर सोमा नाम कि धोबिन रहती है उसकी विधिवत पूजा करने से यह दोष दूर हो जाएगा। जिसके बाद उसका छोटा बेटा और उसकी पुत्री सोमा धोबिन को लेने के लिए निकल पड़े। दोनो भाई बहन समुद्र के पास पहुंचकर उसे पार करने का उपाय सोचने लगे। लेकिन कई कोशिश करने के बाद भी वह समुद्र पार नहीं कर सके। जिसके बाद वह एक पेड़े के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर ही एक गिद्ध का घोंसला भी था। जिसमें गिद्ध का परा परिवार रहता था। जब गिद्धों के मां शाम को खाना लेकर आई और उसने वह खाना बच्चों को दिया तो उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। जब उनकी मां ने इसका कारण पूछा तो गिद्ध के बच्चों ने कहा कि हम तब तक कुछ नहीं खाएंगे जब तक पेड़ के नीचे बैठे भखे लोग कुछ नहीं खाएंगे। तब उस गिद्धनी ने उन दोनों भाई बहनों के पास जाकर इसका कारण पूछा तो दोनों ने गिद्धनी को सारा वृतांत सुना दिया। इसके बाद उस गिद्धनी ने कहा कि मैं तुम्हें यह समुद्र पार करा दूंगी तुम दोनो भोजन कर लो। इसके बाद दोनों ने भोजन कर लिया और सुबह होने पर गिद्धनी ने दोनो को सोमा के घर पहुंचा दिया।

पौराणिक संदर्भ

संगम में स्नान के संदर्भ में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है, वह है सागर मंथन की कथा। कथा के अनुसार जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद हरिद्वार नासिक और उज्जैन में जा गिरी। यही कारण है कि यहाँ की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात मौन अमवस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें। इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं जो भक्तो के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है। इस दिन पीपल में आर्घ्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।

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