Shardiya Navratri 2023: नवरात्रि में क्‍यों बोए जाते हैं जौ?

Shardiya Navratri 2023: इस साल 15 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रही हैं। इस दौरान लोग आपने घरों में में अखंड ज्योति जलाते और मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की करते हैं।

बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही जौ या जवारे बोए जाते हैं। कहा जाता है कि इसके बिना दुर्गा मां की पूजा अधूरी रह जाती है।

लेकिन कई लोगों को यह पता नहीं होता है कि अखिर नवरात्रि में जौ क्‍यों बोए जाते हैं। आज हम इसी को लेकर चर्चा करें।

क्‍या है जौ बोने की पौराणिक कथा?

धर्मग्रंथों के अनुसार कहा जाता है भगवान ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की स्थापना की, तो इस धरती पर वनस्पतियों में सबसे पहले विकसित होने वाली फसल ‘जौ’ थी। यही कारण है कि नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ज्वारे बोए जाते हैं।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ‘जौ’ को भगवान ब्रह्मा जी का प्रतीक भी माना गया है। साथ ही सृष्टि पर उगने वाली पहली फसल भी ‘जौ’ ही है। यही कारण है कि देवी-देवताओं की पूजा करते सयम या हवन पूजन के दौरान ‘जौ’ को अर्पित किया जाता है।

जवारे देते हैं ये संकेत

कहा जाता है कि नवरात्रि में बोए गए जवारे दो से तीन दिन मे अंकुरित हो जाते हैं, आगर यह नहीं उगे तो आने वाले सयम में आपके लिए अच्‍छे संकेत नहीं हैं।

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मान्‍यता है कि अगर दो-तीन दिन में यदि जवारे अंकुरित नहीं होते हैं, तो इसका मतलब है कि आपको कड़ी मेहनत के बाद ही फल मिलेगा।

शास्‍त्रों के मुताबिक कहा जाता है कि ‘जौ’ के उग जाने के बाद जब उनका का रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा हो, तो आने वाला समय हमारे लिए ठीक नहीं है।

जवारे यदि सफेद या हरे रंग में उग रहे हैं, तो यह हमारे लिए शुभ संकेत देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हमारी पूजा सफल हो गई और आने वाला सयम खुशियों से भरा होगा।

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