Vishnu ji ki aarti: तीनों देवों में स्थान विशेष है। भगवान विष्णु पूरे जगत के पालन और कल्याण की जिम्मेदारी उठाते हैं, जिस वजह से उन्हें पालनहार भी कहा जाता है। भगवान विष्णु हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें सृष्टि के पालनहार और रक्षक के रूप में पूजा जाता है। वे त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में संहारक भगवान शिव और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा के साथ महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। विष्णु जी को आमतौर पर नीले रंग की त्वचा, चार भुजाओं और शांत मुद्रा में चित्रित किया जाता है, जिनमें वे शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए होते हैं, जो उनकी दिव्य शक्तियों के प्रतीक हैं। वे समय-समय पर पृथ्वी पर अवतार लेते हैं, जैसे भगवान राम और कृष्ण, जो धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए अवतरित हुए। उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी समृद्धि और धन की देवी मानी जाती हैं। भक्तगण भगवान विष्णु की आरती, भजन और प्रार्थनाओं के माध्यम से उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
विष्णु जी की आरती भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करने वाला एक पवित्र भजन है, जिसे भक्तगण श्रद्धा और भक्ति भाव से गाते हैं। यह आरती प्रातः और संध्या के समय मंदिरों और घरों में की जाती है, जिससे वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। आरती के दौरान दीप, फूल, धूप और कर्पूर अर्पित किए जाते हैं, जिससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस आरती के माध्यम से भगवान विष्णु की लीला, उनकी दिव्यता और उनके अवतारों का गुणगान किया जाता है। भगवान विष्णु, जो सृष्टि के पालनहार हैं, भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करते हैं। उनकी आरती गाने से न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का संचार भी होता है।
भगवान विष्णु जी की आरती (Vishnu Ji Ki Aarti in Hindi)…
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
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भगवान विष्णु जी की उत्पत्ति की कथा
सनातन धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। उनकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएँ पुराणों में मिलती हैं। प्रमुख रूप से विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत महापुराण और पद्म पुराण में इनका विस्तार से वर्णन किया गया है।
सृष्टि की शुरुआत और विष्णु जी की उत्पत्ति
सृष्टि के प्रारंभ में केवल एक असीम शून्य था, जिसमें न कोई आकाश था, न धरती, न जल और न ही कोई जीव। चारों ओर केवल अंधकार और महाप्रलय का जल था। उसी जल में एक दिव्य महासर्प शेषनाग पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में विराजमान थे।
जब सृष्टि की रचना का समय आया, तब भगवान विष्णु के नाभि से एक कमल प्रकट हुआ। इस कमल के भीतर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए, जो सृष्टि के रचनाकार बने। भगवान ब्रह्मा ने ध्यानमग्न होकर सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।
विष्णु जी का स्वरूप और कार्य
भगवान विष्णु स्वयं अनादि और अविनाशी हैं। वे सदा से हैं और सदा रहेंगे। वे त्रिगुणात्मक शक्तियों—सत्व, रज, और तम—में से सत्वगुण के प्रतीक माने जाते हैं।
भगवान विष्णु का कार्य पालन करना है। जब-जब पृथ्वी पर पाप और अधर्म बढ़ता है, तब-तब वे किसी न किसी अवतार में प्रकट होकर धर्म की रक्षा करते हैं। उन्होंने अब तक कई अवतार लिए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से दशावतार (मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि) शामिल हैं।
निष्कर्ष
भगवान विष्णु की उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ जुड़ी हुई है। वे सर्वशक्तिमान, अनादि और निर्विकारी हैं। उनकी कृपा से ही संपूर्ण सृष्टि का पालन-पोषण होता है, और जब भी संसार में अधर्म बढ़ता है, वे अपने अवतारों के माध्यम से उसे समाप्त कर धर्म की स्थापना करते हैं।
“ॐ नमो नारायणाय!”