Udhaar Ke Kangan-उधार के कंगन

Udhaar Ke Kangan:  ” मंझली एक बात कहूं ? ”

बड़ी बहू के चेहरे पर संकोच के अंतहीन बादल …

” कहिए दीदी, निसंकोच ! आपको झिझकने की तनिक भी आवश्यकता नहीं ”

” कैसे कहूं … ?
जिस घटे हुए को सोच कर ही झिझक होती है उसे जुबान …पर किस तरह लाऊं मंझली ?

लेकिन विवश हूं, आखिर मेरी भी बेटियां हैं ”

यूं बात इतनी छोटी भी नहीं …

बड़ी बहु के अनुसार ,

” मुंह दिखाई की रस्म में तुम्हें जो कंगन सासु मां ने दिए हैं। दरअसल वे मेरे हैं जिसे उन्होंने मुझसे जबरन ले लिया था ”

” उफ़! मैं क्या सुन रही हूं ?”

” सच! मंझली अगर मेरा विश्वास नहीं तो देवर जी से पूछ लो ”

घर की बड़ी बहु अंजना साधारण घर से जबकि मंझली बहु धनिक घर से है।

अत्यंत खूबसूरत उन कंगनों को पाकर मंझली बहु खुद को सौभाग्य शाली मानती है।

फ़िलहाल तो मंझली को सहसा विश्वास नहीं हुआ।

वो भौंचक्की रह गई,

” किस पर विश्वास करूं और किस पर नहीं ?”

लेकिन बड़ी दीदी के स्वर की आद्रता उनकी सच्चाई खुद बयां कर रही है ”

लिहाजा पति से,

” सुयश, सच में बताओ यह क्या माजरा है ? ”

सुयश ने सिर झुकाकर कर ग़लती स्वीकार कर ली।

हतप्रभ मंझली,

” सुयश ! इतना अन्याय महज दिखावे के लिए ? मुझे नहीं चाहिए कंगन उधार के”

— लाचार सुयश ,

” देखो मां ने जो किया, उनकी वे जाने अब तुम्हारे मन में जो आए उसे तुम करो ”

अगली सुबह … मंझली ने कलाई से कंगन निकाल कर बड़ी बहु के आंचल में बांध दिए।

बड़ी बहु के आंसू मंझली की हथेलियां भिगो गए।

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